DETAILS, FICTION AND HINDI STORY

Details, Fiction and hindi story

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गर्मी के दिन थे। बादशाह ने उसी फाल्गुन में सलीमा से नई शादी की थी। सल्तनत के सब झंझटों से दूर रहकर नई दुलहिन के साथ प्रेम और आनंद की कलोलें करने, वह सलीमा को लेकर कश्मीर के दौलतख़ाने में चले आए थे। रात दूध में नहा रही थी। दूर के पहाड़ों की चोटियाँ चतुरसेन शास्त्री

गर्मी के दिन थे। बादशाह ने उसी फाल्गुन में सलीमा से नई शादी की थी। सल्तनत के सब झंझटों से दूर रहकर नई दुलहिन के साथ प्रेम और आनंद की कलोलें करने, वह सलीमा को लेकर कश्मीर के दौलतख़ाने में चले आए थे। रात दूध में नहा रही थी। दूर के पहाड़ों की चोटियाँ चतुरसेन शास्त्री

Image: Courtesy Amazon This can be a critically acclaimed satirical Hindi novel penned by Shrilal Shukla and published in 1968. This Hindi fiction book offers a scathing critique in the socio-political landscape of rural India. Set within the fictional town of Shivpalganj, the narrative unfolds throughout the eyes with the protagonist, Ranganath, a young person who returns to his ancestral village to Get better from an disease.

बच्चों की प्यारी गोरैया चिड़िया। यह सबके घर में प्यार से रहती है। जो दाना-पानी देता है, उसके घर तो मस्ती से रहती है। कूलर के पीछे चुनमुन का घोंसला है। उसके तीन बच्चे है , यह अभी उड़ना नहीं जानते।

” alludes into the classical new music custom, symbolising the intricate and harmonious however generally discordant rhythms of daily life in the village.

एक दिन चुनमुन ने बच्चों को उड़ना सिखाने के लिए कहा।

बरसात का दिन था। एक बिच्छू नाले read more में तेजी से बेहता जा रहा था।संत ने बिच्छू को नाली में बहता देख।

एक सरोवर में विशाल नाम का एक कछुआ रहा करता था। उसके पास एक मजबूत कवच था। यह कवच शत्रुओं से बचाता था। कितनी बार उसकी जान कवच के कारण बची थी।

प्रकृति से मिली हुई चीज को सम्मान पूर्वक स्वीकार करना चाहिए वरना जान खतरे में पड़ सकती है।

दोनों में भयंकर युद्ध हुआ पर अंत में सब धरती वासियों ने इतनी जोर से नगाड़े और ढोल बजाये की मेंढक डर कर भाग गया और का-संगी जीत गई।  इसीलिए आज भी उस प्रजाति के लोग सूर्य ग्रहण पर ढोल नगाड़े बजा कर सूर्य की मदद करते हैं।  

उसके पानी से घर में साफ सफाई हुई। रसोई घर में खाना को ढकवा दिया। जिसके कारण मक्खियों को खाना नहीं मिल पाया।

सबसे पहले हम अपने पाठकगण से यह कह देना आवश्यक समझते हैं कि ये महाशय जिनकी चिट्ठी हम आज प्रकाशित करते हैं रत्नधाम नामक नगर के सुयोग्य निवासियों में से थे। इनको वहाँ वाले हंसपाल कहकर पुकारा करते थे। ये बिचारे मध्यम श्रेणी के मनुष्य थे। आय से व्यय अधिक केशवप्रसाद सिंह

मोरल – संत की संगति में दुर्जन भी सज्जन बन जाते हैं।

मोरल – स्वयं की सतर्कता से बड़ी-बड़ी बीमारियों से बचा जा सकता है।

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